" तेरी तो किस्मत चमक गई! "
" सारा किस्मत का खेल है भैया।" ,
" अगर मेरी किस्मत में होगा तो मुझे मिल ही जाएगा। "
" मेरी तो किस्मत ही खराब है । "
" काश! मेरी किस्मत भी वैसी होती। "
अपनी किस्मत को लेकर ऐसी ना जाने कितनी बातें हम दिन भर ख़ुद से और दूसरों से करते रहते हैं।
क्या है ये ' किस्मत '? क्या सच में किस्मत नाम की कोई चीज़ होती है? क्या सच में किस्मत का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है?
कुछ दिनों पहले मैने किसी writing event में participate किया था। वो दिन submission का आखिरी दिन था। मैने सुबह से लेकर रात तक बड़ी ही मेहनत से वह काम पूरा किया। बस submit करना बाकी था। Actual में उस दिन मुझे एक नहीं बल्कि दो submissions करने थे। दोनों writing से realted ही थे।
रात का समय था मैने phone में देखा 11 : 54 बजे है। असल में वह 11 : 45 थे। पर मैं थोड़ी परेशान और जल्दी में थी तो मुझे 11 : 54 लगें। मैं परेशान इसलिए थी क्योंकि सब कुछ पूरा होने के बाद भी submit ही नहीं हो रहा था। मेरी समझ में नहीं आ रहा था की error क्यों आ रहा है? मैने थोड़े से changes भी करके देखें लेकिन submit ही नहीं हुआ। फिर क्या, घड़ी थोड़ी ना किसी के लिए रुकती है, बारा बज ही गए। घड़ी में भी और मेरी शकल पर भी! submission closed ! खतम...
मेरे मुंह से निकल गया, " अरे यार, मेरी तो किस्मत ही खराब है ! छोड़ो अब कुछ नहीं हो सकता, अब अगली बार देखते है शायद इससे भी अच्छा कोई और मौका मिल जाएं।" ऐसा पहली बार नहीं हुआ था मेरे साथ, उससे पहले भी कई बार हो चुका था। Last moment पे कुछ ना कुछ सियाप्पा होता ही है। खैर छोड़ो अब क्या कर सकतें हैं? हाय रे मेरी फूटी किस्मत!!!!!
Wait - Wait - Wait...
क्या ये सब मेरी किस्मत की वजह से हुआ है? क्या सच में इसके पीछे मेरी किस्मत का हाथ, पैर, नाक या नाखून कुछ भी जिम्मेदार है? मैने ख़ुद से सवाल पूछा, " क्या सच में मेरी किस्मत खराब है? " अंदर से जवाब आया , " नहीं रे पगली! कई बार तो तूने ख़ुद कहां था ना की वाह! मेरी किस्मत कितनी अच्छी है। " हां यार, मुझे वो सब याद आ गया। बहुत बार ऐसे भी कहां है मैने की मेरी किस्मत बहुत अच्छी है। और सच में तब मेरे साथ किस्मत से बहुत सी अच्छी अच्छी चीजें भी हुई थी। तो मेरी किस्मत बुरी कैसे हो सकती है? वो तो अच्छी है ना! लेकिन किस्मत तो एक ही है फिर वो एक ही साथ अच्छी और बुरी दोनों कैसे हो सकती है? अगर अच्छी होती तो मेरे साथ बुरा नहीं होता, और अगर बुरी होती तो कभी अच्छा नहीं होता ।
मुझे जवाब मिल गया, ये जो कुछ भी हुआ उसमें असल में गलती तो मेरी ही है। क्योंकि उन events के बारे में मुझे कई दिनों पहले से पता था। लेकिन फिर भी मैं last date तक रुकी रहीं। अगर इसके पहले ही मैने वह काम पूरा कर दिया होता तो भले ही उस समय error आता तब भी मेरे पास समय था उसे ढूंढ के सुधारने में। अगर मैने पहले ही ये काम पूरा किया होता तो शायद मैं submission successfully कर पाती। ये मेरी last moment तक रुके रहने की आदत की वजह से हुआ है। और रहीं दूसरे submission की बात तो मैने उसके लिए शुरुआत में थोड़ा सा लिख रखा था। पर जो थोड़ा सा लिखा था अगर मैने पहले ही वो पूरा कर दिया होता तो शायद मेरा वो submission भी हो जाता। लेकिन नहीं, मैने इसका जो थोड़ा सा लिखा था वो ऐसे ही छोड़ के दूसरा ही topic last moment पर select कर लिया। ऊपर से उसे भी आधा छोड़ के पहले वाला जो इससे ज्यादा जरूरी वाला submission था जिसके बारे में उपर बताया है उसे लिखने को ले लिया। फिर वो पूरा कर लिया लेकिन submit भी नहीं कर पाई। इन सब में गलती तो मेरी ही है ना? किस्मत का कोई दोष नहीं इसमें। और इसके पहले भी मेरे साथ ऐसी घटनाएं घटित हुई तब भी उनका कारण या तो मैं ख़ुद थी या फिर कोई बाहर का कारण था, जैसे last moment पर internet connection जाना। एक मैं अकेली थोड़ी internet इस्तेमाल करती हूं, बहुत से बाकी लोग भी तो करते हैं ना? फिर intetnet जाने के पीछे मेरी बुरी किस्मत कैसे हो सकती है? अगर मेरी बुरी किस्मत की वजह से net गया भी तो उसे इस्तेमाल करनेवाले अन्य लोगों की अच्छी किस्मत उसे जाने से रोक देती ना? असल में Tower में कोई बिगाड़ आगया होगा या कुछ और problem होगा जिस वजह से net चला गया। इससे किसी की भी अच्छी या बुरी किस्मत का कोई ताल्लुकात नहीं है। ऐसे ही बाकी वक्त भी हुआ था। इस किस्मत - विस्मत का दूर दूर तक कोई connection ही नहीं था उन सब चीज़ों से। बस उसका असर मुझ पे अच्छा नहीं हुआ इसलिए मैने उसे ' खराब किस्मत ' का किताब बहाल कर दिया। असल में किस्मत खराब तो है ही नहीं। मैने conclusion निकाल लिया। ' मेरी किस्मत बुरी या खराब नहीं बल्कि अच्छी, बहुत अच्छी है। '
एक minute - एक minute... जो अच्छी चीज़ें हुई मेरे साथ क्या उनके पीछे भी सच में किस्मत थी? या फिर वो भी ऐसे ही था? मैने फिर से सोचना शुरू कर दिया। जो कुछ अच्छा हुआ वो कुछ मेरी वजह से ही हुआ और बहुत सा मेरे किए बिना हुआ। लेकिन वो सब भी सिर्फ़ मेरे लिए नहीं हुआ। क्योंकि अगर वो मेरी अच्छी किस्मत की वजह से हुआ होता तो सिर्फ़ मेरे लिए होता। किसी और की जिंदगी में उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। किसी और से कोई लेना देना नहीं होता। लेकिन ऐसा नहीं था। वह चीज़ सभी के लिए अच्छी साबित हुई थी। जिनमें से मैं बस एक हिस्सा बनी थी उन चीज़ों का। जो जैसे चल रहा था वो वैसे ही अपने हिसाब से चल रहा था। बस अब की बार वें चीज़ें मेरे विपरीत नहीं थी बल्कि मेरे लिए अनुकूल तथा मेरे फायदे की थी। तो बस उसी वजह से मैने उन्हें ' अच्छी किस्मत ' के किताब से नवाजा!
किस्मत होती है या नहीं मुझे नहीं पता। लेकिन इन सब से मैने इतना जरूर सिखा है की हम हमारें साथ जो भी चीज़ें होती हैं उनका संबंध किस्मत से है यह मानना छोड़ कर जो जैसा है, उसे वैसे ही देखना सीखना चाहिए। Reality को समझना चाहिए। reality जाने बिना अपने beliefs नहीं बनाने चाहिए वरना हम उनमें ही फंसे रहेंगे। अगर हम उनमें फंसे रहें तो हम उस परिस्थिति को सुधारने की कोशिश ही नहीं करेंगे। वैसा होने के पीछे की असली वजह ही नहीं जान पाएंगे। लेकिन अगर हमने open minded बनकर बात को समझा, उसके अंत तक जाकर ख़ोज निकाला की यह किस वजह से हुआ है तो हम अगली बार उसे सुधार सकेंगे और हमारे साथ फिर से वैसा ही होने की संभावनाएं कम होंगी। शायद इसी को ' ख़ुद की किस्मत ख़ुद बनाना ' कहते होंगे। क्योंकि इस बार हम किस्मत के चक्कर में नहीं फंसते बल्कि fact को ख़ोज कर उसमें सुधार करने की कोशिश करते हैं और अपने आप ही हमारी 'किस्मत' बदलती है..! और हां, एक और बात, किसी भी काम को last moment तक postpone नहीं करना चाहिए उसे जितना जल्दी हो सके करने की कोशिश करनी चाहिए। वरना पता है ना मेरे साथ क्या क्या हुआ? I am sure आपके साथ भी ऐसा कभी न कभी जरूर हुआ होगा। अगर आपको मेरी बात सही लगी हो तो एक बार समय निकाल कर याद करके देखिए की जब जब आपने अपनी किस्मत को दोष या श्रेय दिया तब तब सच में उसके लिए किस्मत जिम्मेदार थी या कोई और reason था। गहराई में जाकर सवाल पूछ कर देखना, और उनके जवाब भी honestly देने की कोशिश करिएगा। ताकि आपको भी पता चले की इसके पीछे का reason किस्मत थी या कोई और चीज़।
यहां एक और बात बताने का बड़ा मन कर रहा है। जब मैं यह ब्लॉग लिख रहीं थी तब किसी वजह से लिखा हुआ सब चला गया। लेकिन इस बार मैंने अपनी किस्मत को दोष नहीं दिया, ना ही किसी और को। मैने बस simply इसी ब्लॉग को फिर से लिख दिया..! || कथा रामायण की || वाला ब्लॉग लिखते वक्त भी उसका कुछ हिस्सा चला गया था। लेकिन तब भी मैने ख़ुद से कहां, " ठीक है अब गया तो गया। अगर मैं एक बार लिख सकती हूं तो मैं फिर से भी लिख सकती हूं। " तो मैंने जितना पहले का याद था वह लिखा और जो याद नहीं था उसकी फिर से नए से रचना की।
अंत में
'LESSON OF THE DAY'
" कुछ भी गड़बड़ हो जाएं पहले ख़ुद को, रुको जरा दो मिनट्स बोल कर अपने मन को शांत करना है, और फिर ख़ुद से कहना है कि ' It's okay, जो हुआ सो हुआ। मेरे लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। ऐसी कोई मुसीबत नहीं जिसका हल मेरे पास ना हो! मैं अगर ठान लूं तो कुछ भी कर सकती / सकता हूं। मुझ में इतनी ताक़त है की मैं इस मुसीबत का सामना कर सकूं।' बस इतना कह के अपने मन को शांत रखते हुए problem को समझ कर उसका solution निकालना है। ' "
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